छत्तीसगढ़

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत : आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन उचित नहीं

जगदलपुर।  एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पाने के लिए धर्म परिवर्तन संविधान के साथ धोखाधड़ी माना है, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है। बस्तर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है यहां धर्म परिवर्तन का मसला सुर्खियों में रहता आया है। आज सुप्रीम कोर्ट  के निर्णय पर हरिभूमि ने बस्तर के अनेक जागरूक आदिवासी नेताओं से चर्चा की है। सर्व आदिवासी समाज बस्तर के जिला अध्यक्ष दशरथ कश्यप ने कहा कि अनुच्छेद 340 ओबीसी के लिए 341 एसटी व 342 एससी वर्ग में आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट व मद्रास हाईकोर्ट ने कानूनी संगत व संविधान के अनुरूप डिसीजन दिया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का जो डिसीजन आया है वह एससी वर्ग के लिए है जिसमें आरक्षण पाने धर्म परिवर्तन को संविधान के साथ धोखाधड़ी बताया गया है।

बस्तर में पांचवी अनुसूची व पेसा कानून लागू है, यहां जाति व निवास प्रमाणपत्र के लिए पहला आवेदन ग्रामसभा को देना होता है। ग्रामसभा की अनुमति लेना अनिवार्य है इसके उपरांत ही ग्राम पंचायत प्रमाणपत्र दे सकेगा। वहीं आरक्षण का लाभ लेने के लिए अनुच्छेद 341 के अनुसार रूढ़ीवादी प्रथा से अलग होने पर आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि सर्व आदिवासी समाज पहले से ही यह मांग करता आ रहा है कि कोई आदिवासी यदि अंतर्राज्यीय विवाह कर अन्य धर्म को अपनाता है तो उसे आदिवासी होने का आरक्षण और अन्य लाभ नहीं मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह डिसीजन बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। हांलाकि यह डिसीजन एससी मामले पर आया है।

संविधान के अनुकूल फैसला

पूर्व विधायक तथा आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने कहा कि,  सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान के बाहर नहीं हुआ है, यह संविधान के अनुकूल है। दलित वर्ग को हिंदू अथवा बौद्ध धर्म अपनाने पर आरक्षण का लाभ मिलने की व्यवस्था है लेकिन दलित क्रिश्चियन को यह लाभ नहीं है। केवल एसटी को ही यह स्वतंत्रता मिली हुई है कि वह अन्य धर्म को अपनाने के बाद भी आरक्षण व अन्य लाभ उसे मिलता रहेगा। उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील विषय है कई बार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी चुनौती दी गई है। बस्तर के संदर्भ में इस निर्णय पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

रीति-नीति को भूलने वालों को न मिले लाभ

सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर का इस संबंध में कहना है कि धर्म परिवर्तन कर अपने रीति-नीति को भूलने वालों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। नुपूर कमेटी ने माना है कि पांच कैटेगिरी रोटी, बेटी, विवाह, खानपान, रहन सहन आदि व्यवस्था से अलग हो जाता है और कोई धर्म परिवर्तन करता है और अपनी रीति निती को नहीं मानता है उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एससी के मामले में आया है यह व्यवस्था बस्तर व छग में भी है, यहां भी कोई एससी का व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। सभी राज्यों में एससी व एसटी के लिए अलग अलग व्यवस्था है। हमारा स्पष्ट मानना है कि अपने लाभ के लिए यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है तो उसे आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाना चाहिए।

Suraj Makkad

Editor in Chief

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