खुलासा -जानी दुश्मन इजरायल से दोस्ती के बदले सऊदी अरब ने रखी ऐसी शर्त
नईदिल्ली. सऊदी अरब अपने दुश्मन मुल्क इजरायल से रिश्ते सामान्य करने के बदले में अमेरिका से मांग कर रहा है कि वो उसके असैन्य परमाणु कार्यक्रम को हरी झंडी दे. मध्य-पूर्व के एक वरिष्ठ राजनयिक ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन के साथ बातचीत में इजरायल से रिश्ते सामान्य करने के लिए सऊदी जो शर्ते रख रहा है, उनमें परमाणु कार्यक्रम शुरू करने की मांग भी शामिल है. अगर अमेरिका सऊदी की इस बात पर सहमत हो जाता है तो मध्य-पूर्व की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
टाइम्स ऑफ इजरायल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजनयिक ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा कि सऊदी अरब पिछले एक साल से बाइडेन प्रशासन के साथ बातचीत में इस मांग को उठा रहा है.
वरिष्ठ राजनयिक ने कहा कि अमेरिका एक मध्यस्थ के रूप में चाहता है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने को लेकर समझौता हो जाए लेकिन सऊदी अरब समझौते को लेकर किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. अमेरिकी संसद सऊदी अरब की रक्षा मांगों का विरोध करती रही है जिसे देखते हुए सऊदी इजरायल के साथ समझौते से पीछे हटता रहा है.
राजनयिक ने कहा कि दिसंबर के अंत में बेंजामिन नेतन्याहू की धुर-दक्षिणपंथी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इजरायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्ष तेज हुआ है. उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन पर इजरायल के बढ़ते हमलों ने मुस्लिम दुनिया और इजरायल के बीच प्रस्तावित समझौते की उम्मीदों को धूमिल कर दिया है.
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अमेरिका का डर और सऊदी का आश्वासन
अमेरिकी सरकार को डर है कि अगर वो सऊदी अरब को परमाणु कार्यक्रम की अनुमति देता हो तो क्षेत्र में परमाणु हथियारों की दौड़ और तेज हो जाएगी. अमेरिका के इस डर को देखते हुए सऊदी ने उसे आश्वासन दिया है कि असैन्य परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के पूर्ण सहयोग और उसकी निगरानी में विकसित किया जाएगा. हालांकि, अमेरिका सऊदी अरब के इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुआ है.
राजनयिक ने कहा कि सऊदी अरब अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों का विस्तार चाहता है, साथ ही चाहता है कि अमेरिका उसे गारंटी दे कि भविष्य की अमेरिकी सरकारें सऊदी के साथ हुईं हथियारों की डील से पीछे नहीं हटेंगी.
वरिष्ठ राजनयिक ने खुलासा किया कि अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत में सऊदी अरब ने फिलिस्तीन को लेकर कोई विशिष्ठ मांग नहीं की है जैसा कि संयुक्त अरब अमीरात ने की थी. यूएई ने इजरायल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करने के लिए 2020 में शर्त रखी थी कि इजरायल वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से को मिलाने की अपनी योजना को स्थगित कर देगा. इसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य होने शुरू हुए हैं.
हालांकि, राजनयिक को उम्मीद है कि अमेरिका-सऊदी के बीच चल रही वार्ता के अंत में सऊदी अरब फिलिस्तीन से जुड़ी किसी मांग को उठाएगा.
खाड़ी देशों और इजरायल के बीच बढ़ती तल्खी
सऊदी अधिकारियों का बार-बार कहना रहा है कि जब तक फिलिस्तीन को एक अलग देश की मान्यता नहीं दी जाती, वो इजरायल से अपने रिश्ते सामान्य नहीं करेंगे. नेतन्याहू की सरकार इसका कड़ा विरोध करती है.
हाल के दिनों में खाड़ी के देशों और इजरायल के बीच के रिश्ते बेहद तल्ख हुए हैं. इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री ईतामार बेन ग्विर के टेम्पल माउंट की यात्रा को खाड़ी के देशों ने अस्वीकार बताते हुए इजरायल की कड़ी निंदा की थी. वेस्ट बैंक में इजरायल के छापे के दौरान फिलिस्तीनियों की मौतों पर भी खाड़ी देशों ने आपत्ति जताई है. हाल ही में इजरायल के वित्त मंत्री बेजालेल स्मोत्रिच ने फिलिस्तीन को मिटा देने का आह्वान किया था जिसे लेकर खाड़ी के देश इजरायल पर भड़क गए थे.
नेतन्याहू के सत्ता में आने से सऊदी अरब और इजरायल के बीच के रिश्ते इतने खराब हुए हैं कि दोनों देशों के बीच सामान्यीकरण समझौता बेहद मुश्किल लगने लगा है. विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी किंग सलमान के जीवनकाल में यह डील संभव नहीं है.
क्राउन प्रिंस सलमान इजरायल से रिश्ते सामान्य करने को इच्छुक
87 वर्षीय बीमार किंग सलमान फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर बेहद मुखर रहे हैं. हालांकि, उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ईरान के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इजरायल के साथ सामान्यीकरण समझौते को लेकर इच्छुक हैं.
सऊदी अरब ने पिछले साल अमेरिका के कहने पर इजरायल के साथ सामान्यीकरण की दिशा में एक कदम उठाया था. उसने इजरायली विमानों के लिए अपने एयरस्पेस को खोलने पर सहमति व्यक्त की थी. हालांकि, सऊदी अरब ने कहा था कि इस कदम को सामान्यीकरण की पहल के रूप में न देखा जाए.
मामले से परिचित एक अधिकारी का कहना है कि अमेरिका में अगर रिपब्लिकन पार्टी की सरकार होती तो इजरायल के साथ सामान्यीकरण समझौते में उसे अधिक फायदा होता. जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी से उसे कम उम्मीदें हैं.
इधर, सऊदी अरब और अमेरिका के संबंधों में गिरावट भी देखी गई है. जो बाइडेन ने सत्ता में आने के बाद से ही मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर सऊदी अरब की आलोचना की है. सऊदी अरब ने भी अमेरिका के कहने पर भी तेल उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं की है जिससे दोनों देशों के रिश्ते कमजोर हुए हैं.