छत्तीसगढ़

एक साधारण किसान से मछली पालन के अग्रदूत बनने तक की प्रेरक यात्रा

रायपुर/ जिले के ग्राम पंचायत तारा बहरा, तहसील केल्हारी के निवासी अरविन्द कुमार सिंह एक साधारण किसान थे। उनका जीवन भी अन्य ग्रामीण किसानों की तरह संघर्ष पूर्ण और चुनौतियों से भरा हुआ था। सीमित संसाधनों और पारंपरिक खेती के साधनों के माध्यम से आजीविका चलाने वाले अरविंद के लिए अपने परिवार की जरूरतें पूरी करना आसान नहीं था। फिर भी अरविन्द ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और हमेशा कुछ नया करने की कोशिश की। उनकी जिजीविषा और आत्मविश्वास ने उन्हें एक ऐसे रास्ते पर अग्रसर किया, जिसने न केवल उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि उनके जैसे सैकड़ों किसानों के लिए एक नया मार्ग भी प्रशस्त किया। अरविन्द कुमार सिंह का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता खेती से जुड़े थे, और खेती ही उनके परिवार की मुख्य आजीविका का स्रोत था। अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह अरविन्द भी बचपन से ही खेतों में काम करने लगे थे। उन्होंने अपने परिवार के साथ खेतों में मेहनत की और फसल उगाने के पारंपरिक तरीकों को सीखा। उनका परिवार खेती से होने वाली मामूली आय पर निर्भर था, जो अक्सर मौसम की अनिश्चितताओं, फसल की बर्बादी, और बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण अपर्याप्त साबित होती थी। अरविन्द को यह अहसास हुआ कि पारंपरिक खेती से मिलने वाली आय उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं थी, और उन्हें किसी वैकल्पिक आय स्रोत की तलाश करनी होगी। अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अरविन्द ने पारंपरिक खेती के अतिरिक्त अन्य विकल्पों के बारे में सोचना शुरू किया। वे जानते थे कि कृषि के क्षेत्र में कुछ नया करना आसान नहीं होगा, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य की चाहत उन्हें नए रास्तों की खोज के लिए प्रेरित करती रही।

मछली पालन की दिशा से पहली कदम में ही मिली सफलता

इसी दौरान अरविंद को राज्य की मछली पालन योजनाओं के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने महसूस किया कि मछली पालन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने इसे एक नए अवसर के रूप में देखा, जो न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुधार सकता था, बल्कि उनके जैसे अन्य किसानों के लिए भी एक नया रास्ता खोल सकता था। अरविन्द ने मछलीपालन के अपने विचार को मूर्त रूप देने के लिए राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने का निर्णय लिया। उस समय छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार, के शासन में मछलीपालन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं चला रही थी। वहीं से अरविन्द ने भी अपने विचारों को स्थानीय प्रशासन और कृषि अधिकारियों के साथ साझा किया, जिन्होंने उनकी योजनाओं को समझा और उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया। सरकार की तरफ से उन्हें डबरी (तालाब) निर्माण के लिए 70,000 रुपए की सब्सिडी दी गई। इसके अलावा उन्हें मछली के बीज (अंडे) भी उपलब्ध कराए गए, जिससे वे मछली पालन के व्यवसाय को प्रारंभ कर सके।

अरविन्द कुमार सिंह ने अपने मछलीपालन के प्रयासों को विस्तार देने के लिए 3 से 4 एकड़ भूमि में बड़े तालाबों का निर्माण किया, जिन्हें स्थानीय भाषा में श्डबरी श् कहा जाता है। इन तालाबों में उन्होंने मछली की कई किस्मों का पालन शुरू किया, जैसे कि कतला, रोहू, मृगल, पंगेसियस (कैटफिश), रूपचंदा, और कारी मछली उन्होंने तालाबों में स्वच्छ पानी, उचित ऑक्सीजन का स्तर, और मछलियों के लिए उचित भोजन की व्यवस्था की। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें मछलीपालन में शीघ्र ही सफलता दिलाई। अरविन्द की पहली सफलता ने उन्हें और अधिक तालाब बनाने और मछलीपालन के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने मछलियों के प्रजनन और पालन-पोषण की नई तकनीकों को भी सीखा और अपने तालाबों में उनका सफलतापूर्वक उपयोग किया।

Suraj Makkad

Editor in Chief

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