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बिलासपुर लोकसभा: 1996 से अब तक कैसे बदला समीकरण….तीन बार परिसीमन…पुन्नुलाल मोहले ने पार्टी की जमीन तैयार की,फिर लखन, अरुण साव के बाद अब तोखन साहू पर दांव….

मनीष शर्मा
बिलासपुर । छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। भारतीय जनता पार्टी ने 11 लोकसभा प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। इनमें से सबसे हाईप्रोफाइल सीट बिलासपुर का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प है। कांग्रेस-भाजपा प्रमुख पार्टियों में 7 बार कांग्रेस तो 7 बार भाजपा चुनाव जीत चुकी है। केवल एक बार निर्दलीय प्रत्याशी तो एक बार लोकदल के प्रत्याशी को जीत मिली थी।भाजपा नेता पुन्नूलाल मोहले ने पार्टी की जमीन तैयार की थी। इस लोकसभा में लगातार चार पुन्नूलाल मोहले जीते।

2009 में जूदेव सांसद निर्वाचित हुए
भाजपा नेता पुन्नूलाल मोहले ने पार्टी की जमीन तैयार की थी। 4 बार लोकसभा चुनाव जीत कर मुंगेली जिले के भाजपा नेता पुन्नूलाल मोहले ने पार्टी की जमीन तैयार की थी। उनके पहले कांग्रेस के रेशमलाल जांगड़े, भाजपा के लखनलाल साहू और अरुण साव मुंगेली जिले के रहने वाले और चुनाव जितने वाले सांसद बने। इस बार भी भाजपा ने मुंगेली जिले के साहू समाज के नेता और पूर्व विधायक तोखन साहू का नाम तय किया है। बिलासपुर लोकसभा सीट एक महत्वपूर्ण सीट है। यह सीट भाजपा के गढ़ के रूप में जानी जाती है।

बिलासपुर लोकसभा सीट भाजपा के गढ़ के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रही है। बिलासपुर लोकसभा सीट का तीन बार परिसीमन हुआ है। शुरूआत में यह सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित थी। इसके बाद इसमें बदलाव करते हुए इसे अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया।

2009 में इसे एक बार फिर सामान्य कर दिया गया। वर्ष 1996 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। वर्ष 1996 से 2004 के बीच चार बार हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के पुन्नूलाल मोहले यहां से सांसद रहे। मोहले के नाम लगातार चुनाव जीतने का कीर्तिमान भी रहा है ।

2009 में जूदेव सांसद निर्वाचित हुए

पुन्नुलाल मोहले के बाद भाजपा के दिग्गज नेता दिलीप सिंह जूदेव चुनाव लड़े। वर्ष 2009 में जूदेव सांसद निर्वाचित हुए। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी को प्रत्याशी बनाया था। वर्ष 2014 के चुनाव में बिलासपुर सीट राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में फिर सफल रही।

करुणा शुक्ला को मिली थी करारी हार

पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को कांग्रेस ने यहां से उम्मीदवार बनाया था। सर्वाधिक वोटों के अंतर से चुनाव हारने का कीर्तिमान करुणा के नाम रहा। एक लाख 75 हजार वोटों के अंतर से वे भाजपा के एक सामान्य कार्यकर्ता लखनलाल साहू से चुनाव हार गईं। तब समूचे देश के साथ ही बिलासपुर लोकसभा सीट में भी पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर का जोर दिखाई दिया था। यहां ओबीसी वर्ग की बहुलता है। इसमें साहू व कुर्मी की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। ओबीसी में यादव भी प्रभावी भूमिका में है। 9 विधानसभा क्षेत्र हैं यहां बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 9 विधानसभा सीटें आती हैं। बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में दो जिला बिलासपुर व मुंगेली को शामिल किया गया है।

2019 में सांसद लखन साहू का टिकट काटकर अरुण साव को दिया था टिकट

2014 में बिलासपुर लोकसभा सीट में पीएम नरेंद्र मोदी की लहर का जोर दिखाई दिया था। यही वजह है 2019 में सांसद लखन साहू का टिकट काटकर वर्तमान में संघ के करीब मने जाने वाले अरुण साव को सांसद प्रत्याशी बनाया गया। अरुण साव ने रिकॉर्ड 141763 मतों से अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को हराया।

बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र

बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं। बिलासपुर जिले में 6 विधानसभा सीट बिलासपुर, बिल्हा,बेलतरा,मस्तूरी,कोटा और तखतपुर तो वहीं मुंगेली जिले की दो सीट मुंगेली और लोरमी विधानसभा सीट शामिल है। विधानसभा चुनाव में 8 में से 6 पर भाजपा तो वहीं कोटा और मस्तूरी विधानसभा में कांग्रेस ने जीत हासिंल की है। 2019 मतदाता सूची के अनुसार 18 लाख 76 हजार 953 मतदाता है। इसमें पुरुष मतदाता की संख्या 9 लाख 53 दजर 659 वहीं महिला वोटरों की संख्या 9 लाख 23 हजार 203 है।

जनसंघ के प्रत्याशी जमुना प्रसाद को हार का मुंह देखना पड़ा

बिलासपुर लोकसभा का पहला आम चुनाव 1951 में हुआ और दूसरा 1957 में हुआ। दोनों ही बार कांग्रेस के रेशमलाल जीतकर संसद गए। 1962 में कांग्रेस ने निर्दलीय प्रत्याशी सत्यप्रकाश को समर्थन दिया। वे जीते और इसे पार्टी की जीत मानी गई। जनसंघ के प्रत्याशी जमुना प्रसाद को हार का मुंह देखना पड़ा। 1967 में कांग्रेस पार्टी के अमर सिंह ने जनसंघ के मदन लाल के खिलाफ करीबी अंतर से जीत दर्ज की। 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राम गोपाल तिवारी ने जनसंघ के मनहरण लाल पांडेय को हराया।

1977 में भारतीय लोकदल के निरंजन प्रसाद केशरवानी ने मारी थी बाजी

1977 में भारतीय लोकदल ने निरंजन प्रसाद केशरवानी को टिकट दी और कांग्रेस के अशोक राव को शिकस्त मिली। 1980 तक कांग्रेस दो भागों बंट चुकी थी। कांग्रेस (आई) के गोदिल प्रसाद अनुरागी ने जीत दर्ज की। 1984 के चुनाव में पहली बार गोविंदराम मिरी के रूप में भाजपा ने बिलासपुर सीट में चुनावी राजनीति की शुरूआत की। लेकिन मिरी को कांग्रेस के खेलनराम जांगड़े के खिलाफ करारी हार झेलनी पड़ी। 1989 के चुनाव में भाजपा ने पलटवार किया और पहली बार जीत का स्वाद चखा।

रेशमलाल कांग्रेस के खेलनराम को हराकर दिल्ली गए। 1991 में फिर खेलनराम व गोविंदराम मिरी आमने-सामने थे। कांग्रेस ने 1984 की जीत दोहराई। 1996 के चुनाव में भाजपा के पुन्नूलाल मोहले ने कांग्रेस की जीत का रथ रोका। गोदिल प्रसाद अनुरागी की बेटी तान्या अनुरागी को 48615 वोटों से हराकर सीट कांग्रेस से छीनकर भाजपा की झोली में डाल दी। इसके बाद 1998, 1999 और 2004 में लगातार जीत दर्ज कर उन्होंने बिलासपुर सीट में पार्टी की जमीन तैयार कर दी। 2009 में दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस की रेणु जोगी को 20०81 वोटों से पराजय मिली। 16 मई की काउंटिंग के नतीजे के बाद चाहे जीत कोई भी दर्ज करे, लेकिन यह इतिहास में दर्ज हो जाएगा।

Suraj Makkad

Editor in Chief

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