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अब भारतीय वैज्ञानिकों ने लगाया अंतरिक्ष में X-Ray विस्फोट का पता, जानें क्या होगा असर…

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग में सफल रहा भारत अब लगातार अंतरिक्ष की गुत्थियां सुलझाने में व्यस्त है। हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक्स-रे विस्फोट की घटना का पता लगाया है।

यह विस्फोट अल्‍ट्राहाई मैग्नेटिक फील्ड (मैग्नेटर) में हुआ। यह खगोलीय घटना इसरो के एस्ट्रोसैट अंतरिक्षयान ने कैद की है। इससे मैग्नेटर से संबंधित स्थितियों को समझने में सहायता मिल सकती है।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, मैग्नेटार ऐसे न्यूट्रॉन तारे हैं, जिनमें अल्‍ट्राहाई चुंबकीय क्षेत्र होता है। यह स्थलीय चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक मजबूत होता है।

मैग्नेटर का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से एक क्वाड्रिलियन (एक करोड़ शंख) गुना अधिक मजबूत होता है। शोधार्थियों ने बताया, यह सबसे चमकीले विस्फोटों में से एक रहा। इसकी अवधी 90 मिलीसेकंड की रही। 

मैग्नेटर का अध्ययन करने के लिए रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) और दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एस्ट्रोसैट पर दो उपकरण एलएएक्सपीसी और एसएक्सटी लगाए हैं, जिनके उपयोग से मैग्नेटर का विश्लेषण किया गया।

वैज्ञानिकों का प्रमुख उद्देश्य 33 मिलीसेकंड की औसत अवधि के साथ 67 छोटे एक्स-रे विस्फोटों का पता लगाना था। जिस मैग्नेटर से इस विस्फोट का पता चला उसे एसजीआर जे1830-0645 कहा जाता है।

अक्टूबर 2020 में नासा के स्विफ्ट अंतरिक्ष यान ने इसकी खोज की थी। यह लगभग 24 हजार वर्ष पुराना न्यूट्रॉन तारा है।

न्यूट्रॉन तारे की सतह से उत्पन्न हुई ऊर्जा
वैज्ञानिकों ने बताया, एसजीआर जे1830-0645 में बनी यह ऊर्जा कई अन्य मैग्नेटर में पाई गई ऊर्जा से भिन्न थी। यह न्यूट्रॉन तारे की सतह से उत्पन्न हुई होगी।

इस प्रकार, यह शोध मैग्नेटर्स और उनकी चरम खगोलीय स्थितियों के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाने में योगदान देता है।

शोध दल अब इन अत्यधिक ऊर्जावान विस्फोट की उत्पत्ति को समझने और यह पता लगाने के लिए अपने आगे के अध्ययन का विस्तार करने की योजना बना रहा है कि क्या ये उत्‍सर्जन खगोलीय है या अन्य प्रकृति के हैं।

Yogesh Bansal

Editor in Chief

Yogesh Bansal

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