सतीश को HC से भी राहत नहीं: वकील बोले-बिना अनुमति FIR गलत, हाईकोर्ट ने शासन से दो सप्ताह में मांगा जवाब
बिलासपुर/ छत्तीसगढ़ नान घोटाला केस के आरोपी और पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ FIR पर उनके वकील ने सवाल उठाए हैं। राज्य शासन के प्रावधान के अनुसार, किसी भी महाधिवक्ता के खिलाफ बिना अनुमति FIR दर्ज करना गलत है। लिहाजा, उन्हें अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए।
हालांकि, हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है। वहीं, इस मामले में राज्य शासन से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। केस की अगली सुनवाई अब दो सप्ताह बाद होगी। दरअसल, 4 नवंबर को EOW/ACB ने सतीश चंद्र वर्मा के अलावा रिटायर्ड आईएएस डॉ आलोक शुक्ला और रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा के खिलाफ भी केस दर्ज किया है।
आरोप है कि, तीनों ने प्रभावों का दुरुपयोग कर गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया है। इसी मामले में 2019 में ईडी ने भी केस दर्ज किया है, जिसकी जांच चल रही है। पूर्व महाधिवक्ता पर आरोप है कि उन्होंने तत्कालीन अफसरों के साथ मिलकर आरोपियों को बचाने आपराधिक षडयंत्र किया है। यह भी आरोप है कि उन्होंने दोनों आरोपी अफसर और जज के बीच संपर्क बनाए हुए थे।
पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा।
स्पेशल कोर्ट से खारिज हो चुकी है अग्रिम जमानत
पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने EOW/ACB की एफआईआर के बाद अग्रिम जमानत के लिए रायपुर की स्पेशल कोर्ट में जमानत अर्जी लगाई थी। जिसमें उन्होंने गिरफ्तारी से पहले जमानत देने की मांग की थी। इस दौरान लंबी बहस चली, जिसके बाद स्पेशल कोर्ट की जज निधि शर्मा ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जिसके बाद कोर्ट ने अग्रिम जमानत खारिज करते हुए कहा कि अपराध में आरोपी की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिनके सहयोग के बिना अपराधिक षडयंत्र को अंजाम देना संभव नहीं था।
वकील बोले- राज्य शासन ने दर्ज की गलत FIR
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट किशोर भादुड़ी ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि, राज्य शासन ने 2018 में संशोधित नियम लागू किया है। जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि चूंकि, महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल ने की है। लिहाजा, उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए धारा 17(A) के तहत अनुमति जरूरी है। लेकिन, इस केस में सरकार ने कोई अनुमति नहीं ली है और सीधे तौर पर केस दर्ज किया है।
सीनियर एडवोकेट भादुड़ी का यह भी कहना था कि नान घोटाले का केस साल 2015 का है। जिसमें अब FIR दर्ज की गई है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और चैट की बात करें तो इसमें भी तीन साल हो गया है। तब तक सरकार क्या कर रही थी। उन्होंने इस केस को राजनीति से प्रेरित बताते हुए निराधार बताया है। साथ ही कहा कि एफआईआर चलने योग्य नहीं है।
हाईकोर्ट ने नहीं दी अंतरिम राहत
केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य शासन से जवाब मांगा, तब सरकारी वकील ने तीन हफ्ते का समय मांगा। इस बीच याचिकाकर्ता की तरफ से अंतरिम राहत की मांग की गई। लेकिन, कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। वहीं, राज्य शासन को दो सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।