हाईकोर्ट बोला- राज्य सरकार को यूनिवर्सिटी में दखल का अधिकार: बस्तर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति ने धारा 52 की कार्रवाई को दी थी चुनौती,अपील खारिज
बिलासपुर/ बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 52 लागू करने का अधिकार राज्य सरकार को है। विशेष परिस्थितियों में राज्य शासन को यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक प्रक्रिया में दखल करने का अधिकार है।
इस आदेश के साथ ही हाईकोर्ट ने बस्तर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति की अपील को खारिज कर दी है। दरअसल, धारा 52 के तहत तत्कालीन कुलपति को पद से हटाने के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
राज्य शासन ने वित्तीय अनियमितता बरतने और प्रशासनिक गड़बड़ी करने को लेकर बस्तर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. एनडीआर चंद्रा को पद से हटा दिया था। राज्य शासन ने यह कार्रवाई धारा 52 के तहत की थी। राज्य सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए एक जांच समिति भी गठित गई।
जांच रिपोर्ट से पता चला कि, विश्वविद्यालय प्रबंधन में गंभीर खामियां हैं और वित्तीय अनियमितताएं भी की गई है। जिसके बाद कुलपति प्रो. चंद्रा को हटाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी। राज्य शासन के इस आदेश के खिलाफ कुलपति चंद्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ की अपील
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने केस की सुनवाई की। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। जिसके बाद कुलपति चंद्रा ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई।
इस दौरान बताया गया कि छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 52 की राज्य द्वारा व्यय और उसके प्रयोग पर केंद्रित था, जो सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। चंद्रा ने तर्क दिया कि उन्हें कानूनी प्रक्रिया और प्रावधान के खिलाफ हटाया गया है।
साथ ही पद से हटाने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है। पर्याप्त सुनवाई या जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर दिए बिना उनके विरुद्ध अधिसूचनाएं जारी की गई थी।
यूनवर्सिटी प्रशासन में सुधार लाने राज्य शासन को है अधिकार
शुक्रवार को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा है। डिवीजन बेंच ने माना कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि जो धारा 52 के तहत एक आवश्यकता है। उसके न्यायिक मानकों द्वारा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में जहां विश्वविद्यालय के प्रशासन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है।
राज्य को संस्थागत हितों की रक्षा के लिए अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य के पास अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग कर विश्वविद्यालय के प्रशासन में सुधार लाने का अधिकार है, ताकि संस्थागत हितों की रक्षा हो सके।