बिल्व पत्र के बिना अधूरी रहती है शिव पूजा:ताजे बिल्व पत्र न मिले तो पुराने पत्तों को ही धोकर फिर से चढ़ा सकते हैं शिवलिंग पर
अभी सावन महीना चल रहा है और इस महीने में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है। शिव पूजा में बिल्व पत्र का महत्व काफी अधिक है। इन पत्तों के बिना शिव पूजा अधूरी मानी जाती है। बिल्व पत्रों से शिवलिंग का श्रृंगार करना चाहिए। भोग लगाते समय भी प्रसाद के साथ बिल्व पत्र रखे जाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शिव पूजा में जल के साथ ही बिल्व पत्र अनिवार्य है। शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र खाने की परंपरा भी है। बिल्व के सेवन से धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिल सकते हैं।
मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति जल के साथ सिर्फ बिल्व पत्र ही शिवलिंग पर चढ़ा देता है तो उसे शिव कृपा बहुत जल्दी मिल जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक शिकारी शिकार के लिए बिल्व पत्र के पेड़ पर चढ़ गया था। शिकार की राह देखते समय शिकारी ने अनजाने में ही बिल्व पत्र तोड़कर नीचे फेंकना शुरू कर दिए। पेड़ के नीचे शिवलिंग था, उस शिकारी के फेंके हुए बिल्व पत्र शिवलिंग पर गिर रहे थे। इससे शिव जी प्रसन्न हो गए और उस शिकारी को दर्शन दिए थे। इस वजह से शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने की महिमा बताई गई है।
बिल्व पत्र से जुड़ी ये बातें ध्यान रखें
अष्टमी, चतुदर्शी, अमावस्या और रविवार को बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। इन दिनों में बाजार से खरीदकर लाए हुए बिल्व पत्र शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं।
शिवलिंग पर चढ़ाए गए बिल्व पत्र बासी नहीं माने जाते हैं। एक ही बिल्व पत्र को बार-बार धोकर अगले दिन फिर से पूजा में चढ़ाया जा सकता है।
अगर ताजे बिल्व पत्र नहीं मिल रहे हैं तो शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र को धोकर फिर से शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं।
शिवपुराण में बिल्व वृक्ष को शिव जी का ही रूप बताया गया है। इसे श्रीवृक्ष भी कहते हैं। श्री देवी लक्ष्मी का ही एक नाम है। इस कारण बिल्व की पूजा से लक्ष्मी जी की भी कृपा मिलती है।
इस पेड़ की जड़ों में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में देवी कात्यायनी वास करतीं हैं। इसी वजह से इस वृक्ष को दैवीय वृक्ष कहा जाता है।
बिल्व पत्र के नियमित सेवन से हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ नियंत्रित रहते हैं। बिल्व पत्र पाचक होते हैं। पेट की गैस खत्म हो सकती है।